ब्यूरो प्रमुख – चन्द्र प्रकाश राज , सारण ,
बुजुर्गों के साथ होते दुर्व्यवहार की न करे अनदेखी वृद्धावस्था कड़वी सच्चाई स्वीकार्य करें उनका सम्मान करे.

विश्व बुजुर्ग दुरूपयोग जागरूकता दिवस 15 जून पर विशेष
📝 रंजीत भोजपुरिया की एक रिपोर्ट
वृद्धावस्था एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जहां व्यक्ति सबकुछ रहते हुए भी अकेला हो जाता है और अपने अतीत मे बिते पल को याद करते हुए इस दुनिया को अलविदा कहता है और इससे कोई अछूता नही रहता चाहे अमीर हो या गरीब या किसी धर्म विशेष का. वर्तमान परिवेश में उन बुजुर्गो का जीवन बद से बदतर होता दिख रहा है. जहां बुजुर्गो के प्रति दुर्व्यवहार का मामला दिनो-दिन बढ़ रहा है और लगातार बढ़ रहे वृद्धाश्रमों की संख्या भी इसी ओर इशारा कर रही है कि भविष्य में बुजुर्गों की हालात और भी खराब होनी तय है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुमान के मुताबिक सभी देशों को 2015 और 2030 के बीच वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि देखने की उम्मीद है और यह विकास विकासशील क्षेत्रों में तेजी से होगा यही नहीं वृद्धों के साथ बड़ी मात्रा में दुरुपयोग बढ़ने की उम्मीद है।
हालांकि वृद्धावस्था का दुरुपयोग एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है जो दुनिया भर के लाखों वृद्ध व्यक्तियों के स्वास्थ्य और मानव अधिकारों को प्रभावित करता है, और एक ऐसा मुद्दा जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करता है और इसके रोकथाम व जागरूकता के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून को ‘विश्व बुजुर्ग दुरुपयोग जागरूकता दिवस’ ( World Elder Abuse Awareness Day ) के रूप में नामित किया है। यह वर्ष में एक दिन मनाया जाता है जब पूरी दुनिया हमारी कुछ पुरानी पीढ़ियों के दुरुपयोग और पीड़ा के विरोध में आवाज उठाती हैं।
एक विशेष सर्वे के अनुसार एक आंकड़ा सामने आया है जिसे देख सभी लोग हतप्रभ है आंकड़ों मे देखा जाए तो 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों की वैश्विक आबादी 2015 में 900 मिलियन थी संभावना जताई जा रही है कि 2050 में यह अाबादी लगभग 2 बिलियन से अधिक होगी।
इन्ही मुद्दो पर खास बातचीत में छपरा शहर के निवासी व जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के राजनीति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ लालबाबू यादव ने बताया कि बुजुर्गों ने देश के नवनिर्माण में ना सिर्फ अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है बल्कि अपने जवानी काल में चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो खेती, किसानी, नौकरी, मध्यमवर्ग व्यवसाय सबमे देश के विकास में बेहतर कार्य किया है. आज की वर्तमान पीढ़ी खासकर युवा वर्ग को चाहिए कि उनके योगदान को याद करके उनका सम्मान करें. सरकार के स्तर से काफी प्रयास किया जाता रहा है. वृद्ध जनों के लिए जहां वृद्धा पेंशन, निराश्रित वृद्धजन के लिए वृद्धाश्रम खोला गया है जहां बुजुर्गों का देखभाल सरकारी गैर सरकारी संगठनों के द्वारा किया जाता है.
जबकि दुसरी तरफ देखा जाए तो बुजुर्ग माता पिता या अन्य संबंधी जो वृद्धावस्था के दौर से गुजर रहे होते है उनके आश्रित उनके देखभाल करने के बजाय ऐसे ही छोड़ देते है जो काफी दुखदायी होता है इसका मुख्य कारण पश्चिमी सभ्यता का हमारे संस्कृति पर हावी होना.
किसी भी परिवार मे बाजारवाद को खासकर वृद्ध जनो के मामले में अक्सर देखा जा सकता है एक पिता अपने संतान के लिए क्या नही करता उसके लालन पालन, शिक्षा, रोजगार, शादी ब्याह से उसके सुखद सुखमय जीवन के लिए अपना सर्वस्व त्याग करके इस दुनिया को अलविदा कह जाते है. पर वही संतान उनके लिए कुछ नही कर पाते सिवाय नफा नुकसान के और जहां हानी नुकसान आये वह रिश्ता ज्यादा देर नही टिकता उसमे खटास आ जाता है.
डॉ लालबाबू यादव यह भी बताते है कि भारतीय संस्कृति अभी बहुत समृद्ध है जहां मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: की भावना रहेगी तब तक बुजुर्गों का सम्मान मिलता रहेगा और आज की युवा पिढ़ी को भी यही चाहिए कि पश्चिमीकरण का त्याग कर वृद्ध जनों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के प्रति अपनी अवाज बुलंद करे व बुजुर्गो का समुचित सम्मान दें.
आपको यह भी बताते चले कि पूरे विश्व में लगभग 6 में से 1 वृद्ध व्यक्ति किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार का शिकार होता है, जो पहले से अनुमान से अधिक है. बड़े पैमाने पर वृद्ध जनों के साथ दुर्व्यवहार की भविष्यवाणी की जाती है क्योंकि कई देश तेजी से बढ़ती आबादी का सामना कर रहे हैं और समय रहते इसपर अंकुश ना लगाया गया तो आने वाले समय में सरकार व समाज के लिए वृद्ध जनों का दुरूपयोग, उनके प्रति दुर्व्यवहार हिंसा और उनकी अनदेखी का दुष्परिणाम देखने को मिल सकता है.

