Fri. Jul 18th, 2025

विशेष रिपोर्ट :: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि पर विशेष

बेगूसराय ::–

24 अप्रैल 2020 शुक्रवार

मिन्टू झा [मंसूरचक] ::–

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म सन् 1908 ई बिहार के मुंगेर (अब बेगूसराय) जिले के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने मोकामा घाट से मैट्रिक तथा पटना विश्वविद्यालय से बी.ए ऑनर्स किया। बाल्यावस्था में ही इन्होंने अपने साहित्य सृजन की प्रतिभा का परिचय दे दिया था।

24 अप्रैल 1974 की शाम गंगा की गोद में उत्पन्न दिनकर के अस्ताचल जाने की शाम थी। वह रात भारतीय साहित्य के इतिहास में काली स्याही से दर्ज हो गयी, जब हिंदी साहित्य के सूर्य रामधारी सिंह दिनकर सदा के लिए इस नश्वर शरीर को त्याग बैकुंठ लोक चले गए। उस समय संचार के इतने साधन तो थे नहीं, धीरे-धीरे जब लोगों को पता चला कि तिरुपति बालाजी के दर्शन के बाद दिनकर जी ने इस शरीर को हमेशा के लिए त्याग दिया, दिनकर अब नहीं रहे। इस खबर पर सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ कि ओजस्वी वाणी और भव्य स्वरूप का सम्मिश्रण भारतीय हिंदी साहित्य के तेजपुंज अब हमारे बीच नहीं रहे।

लेकिन यह यह सत्य था, देश ही नहीं विदेशों के भी साहित्य जगत में शोक की लहर फैल गई। मद्रास से लेकर दिल्ली तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के साहित्यजगत और हिन्दी पट्टी में शोक की लहर फैल गई। उनके पैतृक गांव बेगूसराय के सिमरिया का हर घर रो उठा, तो इंदिरा गांधी भी सदमे में आ गईं।

प्रत्येक कवि, लेखक, चित्रकार के जीवन के अंतिम दिन अत्यंत ही आश्चर्यजनक और लोमहर्षक होते हैं। ऐसा ही दिनकर जी के साथ भी हुआ था, तिरुपति बालाजी के दर्शन करने गए दिनकर जी को जब वहीं दिल का दौरा पड़ा तो वहां से मद्रास तक रास्ते में हे राम-मेरे राम को याद करते रहे। बालाजी के सामने उन्होंने प्रार्थना की थी- हे भगवान, तुमसे तो उऋण हो गया अब मेरी उम्र आप जयप्रकाश को दे दो। अपनी मृत्यु के दिन ही दिनकर जी ने हरिवंश राय बच्चन को एक पत्र लिखा था। जिसमें दिनकर जी ने कहा था कि प्रिय भाई देखें पिता श्री रामचंद्र कहीं स्थापित करेंगे या यूं ही घूमते रहेंगे। ‘लॉजिक गलत, पुरुषार्थ झूठा, केवल राम की इच्छा ठीक।’

बिहार के तत्कालीन मुंगेर अब बेगूसराय जिला के सुरसरि गंगा के तटवर्तिनी सिमरिया के एक सामान्य किसान के घर में 23 सितंबर 1908 को जब मनरूप देवी एवं रवि सिंह के यहां जब द्वितीय पुत्र जन्म हुआ था तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि एकदिन यह राष्ट्रीय फलक पर ध्रुवतारा-सा चमकेगा। लेकिन निधन के बाद जब देश में शोक की लहर दौड़ी तब पता चला यह ध्रुवतारा नहीं सूर्य थे। गांव में पैदा हुए दिनकर सदा जमीन से जुड़े रहे और संघर्ष करते हुए राष्ट्र की भावना को निरंतर सशक्त भाषा में अभिव्यक्त कर अपनी अद्वितीय रचनाओं के कारण साहित्य के इतिहास में अमर हो गए। सभी मानते हैं कि हमारे देश का हर युग, युवा पीढ़ी राष्ट्रकवि दिनकर को सदा श्रद्धा एवं सम्मान सहित याद करती रहेगी।

प्रारंभिक शिक्षा गांव तथा बारो स्कूल से लेकर दिनकर जी को पढ़ाई के लिए दस किलोमीटर पैदल चलकर गंगा के पार मोकामा उच्च विद्यालय जाना पड़ा। कभी तैरकर तो कभी नाव से स्कूल आते-जाते रहे और 1928 में मोकामा उच्च विद्यालय से पास करने बाद नामांकन पटना कॉलेज पटना में हो गया। 1932 में वहां से प्रतिष्ठा की डिग्री लेकर आगे पढ़ने की इच्छा थी लेकिन घर की परिस्थिति से मजबूर होकर पढ़ाई छोड़ दी और 1933 में एच.ई. उच्च विद्यालय बरबीघा में शिक्षक बन गए। अगले ही साल निबंधन विभाग के अवर निबंधक के रूप में नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान कविता का शौक जोर पकड़ चुका था, दिनकर उपनाम को ‘हिमालय’ और ‘नई दिल्ली’ ख्याति भी मिलने लगी। लेकिन इस ख्याति का पुरस्कार मिला कि पांच साल की नौकरी में 22 बार तबादला हुआ।

दिनकर ब्रिटिश शासन काल में सरकारी नौकर थे लेकिन नौकरी उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति में कभी बाधक नहीं बनी। वह उस समय भी अन्याय के विरुद्ध बोलने की शक्ति रखते थे और बाद में स्वाधीनता के समय भी सरकारी नौकरी करते समय हमेशा अनुचित बातों का डटकर विरोध करते रहे। 1943 से 1945 तक संगीत प्रचार अधिकारी तथा 1947 से 1950 तक बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग में निदेशक के पद पर कार्यरत रहे। 1952 में जब राज्यसभा का गठन हुआ तो तेजस्वी वाणी एवं राष्ट्र प्रेरक कविता की धारणा के कारण जवाहरलाल नेहरू ने दिनकर जी को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर अपने पाले में लेने की कोशिश की। 1962 का लोकसभा का चुनाव हारने के बाद ललित नारायण मिश्रा ने जब अपने लिए उनसे इस्तीफा देने का अनुरोध किया था तो बगैर कुछ सोचे और समय गंवाए राज्यसभा सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया था। 1963 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने। लेकिन 1965 में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और कहा था सीनेट और सिंडिकेट में जबतक वाकयुद्ध होता रहा तो उसे सहता रहा लेकिन जब अंगस्पर्श की नौबत आ गई तो पद का परित्याग कर देना आवश्यक था। इसके बाद दिनकर जी को 1965 से 1972 तक भारत सरकार के हिंदी विभाग में सलाहकार का दायित्व निर्वहन करना पड़ा।

राष्ट्र प्रेमियों को प्रेरणा देकर, उनके दिल और दिमाग को उद्वेलित कर झंकृत करने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने 26 जनवरी 1950 को जब लाल किले के प्राचीर से ‘सदियों की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है, दो राह समय के रथ का घघर्र नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ कहा तो पूरे परिदृश्य में एक सन्नाटा खिंच गया था। अपनी कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्ग के लोगों को ललकार कर उन्होंने कर्तव्य बोध जगाने का काम किया, ताकि लोग अपनी जिम्मेदारी समझें और पूरी निष्ठा से उसका निर्वहन करें। तभी तो उन्होंने लिखा था ‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध्र, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।’ बाल्मीकि, कालिदास, कबीर, इकबाल और नजरुल इस्लाम की गहरी प्रेरणा से राष्ट्रभक्त कवि बने दिनकर को सभी ने राष्ट्रीयता का उद्घोषक और क्रांति का नेता माना।

रेणुका, हुंकार, सामधेनी आदि कविता स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरक सिद्ध हुआ था। दिनकर जी ने राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्रीय भावना का ज्वलंत स्वरूप परशुराम की प्रतीक्षा में युद्ध और शांति का द्वंद कुरुक्षेत्र में व्यक्त किया है। संस्कृति के चार अध्याय में भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम दर्शाया और 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1959 में ही राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से पद्मभूषण प्राप्त किया। भागलपुर विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ. जाकिर हुसैन (बाद में भारत के राष्ट्रपति बने) से साहित्य के डॉक्टर का सम्मान मिला। गुरुकुल महाविद्यालय द्वारा विद्याशास्त्री से अभिषेक मिला। आठ नवंबर 1968 को उन्हें साहित्य-चूड़मानी के रूप में राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर में सम्मानित किया गया।

1972 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में उन्होंने कहा था ‘मैं जीवन भर गांधी और मार्क्स के बीच झटके खाता रहा हूं। इसलिए उजाले को लाल से गुणा करने पर जो रंग बनता है, वही रंग मेरी कविता का है और निश्चित रूप से वह बनने वाला रंग केसरिया है।’ द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित प्रबन्ध काव्य ‘कुरुक्षेत्र’ को विश्व के एक सौ सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वां स्थान मिला है। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित हृदय स्पर्शी कविताएं लिखने के कारण ये राष्ट्र कवि के रूप में विख्यात हुए।

By National News Today

नेशनल न्यूज़ टुडे वेब पोर्टल के रूप में आप लोगों के बीच आया है। यह न्यूज़ पोर्टल "खबरें वही जो हो सही" को अक्षरसः पालन करते हुए, आपके बीच में सदैव ताजातरीन ख़बरों से अवगत कराते रहेंगे।

Related Post

You Missed