बेगूसराय ::–
विजय श्री ::–
23 सितंबर 2019
सोमवार
बेगूसराय के बोढ़न बाबू शैक्षिक संसार के देदीप्यमान नक्षत्र की तरह थे। बेगूसराय के जनवादी वामपंथी आंदोलन के रहनुमाओं में अग्रणी पीढ़ी के नुमाइंदे थे। तीन-तीन अंगीभूत कॉलेजों के प्राचार्य पद पर रहते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कदाचार मुक्त परीक्षा की अमिट छाप छोड़ा। आज भी उनका कार्यकाल इन तीनों महाविद्यालयों में तारीख़ी दर्ज़ा रखता है।
उनका जन्म 1 फरवरी 1940 को (विद्यालय के प्रमाण पत्र के अनुसार, जन्मकुंडली के अनुसार 16 सितंबर 1937) मंझौल के मथरामल टोला में किसान के घर हुआ था। उच्च विद्यालय तक उनकी शिक्षा गाँव मे ही प्रतिष्ठित जयमंगला उच्च विद्यालय में हुई। स्नातक गणेश दत्त कॉलेज और एम ए लंगट सिंह कॉलेज मुज़फ़्फ़रपुर से किया।
बोढ़न बाबू ने पढ़ाई पूरी करने के बाद गाँव में गर्ल्स हाई स्कूल खोला और उसके प्रधान बने। 1965 में राम चरित्र सिंह कॉलेज के संस्थापक प्रधानाचार्य रहे। उसके बाद राम निरीक्षण सिंह कॉलेज समस्तीपुर, ए पी एस कॉलेज बरौनी और फिर जी डी कॉलेज में इस पद को सुशोभित किया।
वे बिहार इतिहास परिषद के कार्यसमिति के भी सदस्य थे
कम्युनिस्ट पार्टी में 1964 में जब फुट पड़ी तो उन्होंने ज़िले में सीपीआई (एम) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1975 में नेतृत्व से मतभेद होने के कारण वे सीपीआई (एम) को छोड़ सीपीआई में शामिल हुए। सीपीआई के जिला परिषद के सदस्य भी रहे।
वे यूनिवर्सिटी शिक्षक आंदोलन के पुरोधाओं में से थे। वे प्रगतिशील लेखक संघ के अवकाशप्राप्त के बाद उन्होंने अधिकांश समय वैज्ञानिक चेतना और शिक्षा के प्रसार में लगाए।
ज़िले का कोई भी सेमिनार, सिम्पोजियम, विचारगोष्ठी, सांस्कृतिक आयोजन उनकी शिरकत के बिना अधूरा रहता था। अब सूना लगेगा।
किसानों का धरना हो या छात्र नौजवानों का संघर्ष सबकी पुकार पर “बोढ़न बाबू” एक स्तम्भ की तरह मौज़ूद रहते। चुनावों में उनकी सक्रियता देखते बनती थी । लाल झंडे से सजी गाड़ी पर सवार होकर हर गाँव टोले मोहल्ले की ओर कूच कर जाते।
वे एक गंभीर वक्ता थे। हाल में वे सोशल मीडिया में वे अपने संघर्ष की निरंतरता को रूप दे रहे थे। लोकतांत्रिक आंदोलन के हिरावल दस्ते के निर्माणकर्ताओं में थे।
उनके जाने से ज़िले का बौद्धिक जगत को अपूर्णीय क्षति हुई। एक पीढ़ी का अंत हुआ। पता नहीं इसकी भरपाई कब हो। उनके निधन से पूरे जिले में शोक की लहर छा गयी। वे बेगूसराय के अकादमिक जगत के प्रतिनिधि व्यक्ति थे।
श्रद्धांजलि देने वालों में प्रोफेसर फुलेश्वर प्रसाद सिंह,
प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव ललन कुमार,
राम कुमार, शारदा सिंह, जनवादी लेखक संघ के सचिव
राजेश कुमार, अध्यक्ष प्रोफेसर राजेन्द्र साह, पूर्व अध्यक्ष डॉ भगवान प्रसाद सिन्हा, जन संस्कृति मंच के दीपक सिन्हा आदि थे।
उन्होंने अपने पीछे पत्नी, पुत्र प्रभात रंजन तथा पाँच पुत्री छोड़ गए।


