मंसूरचक (बेगूसराय)::–
मिन्टू झा ::-
भगवान गणेश की प्यारी मूर्ति हो, बेटी पढ़ाओ का संदेश देती कलाकृतियाँ या कृष्ण का मनमोहक स्वरूप वाली खूबसूरत कृति। प्रकृति और पुरुष का मधुर संबंध हो या देश की सुरक्षा में सैनिकों की एकता को दर्शाती मूर्तियां।
एक से बढ़कर एक कलाकृतियाँ की खूबसूरती देखते बनती है। कलाकार मिट्टी को अलग-अलग स्वरूप में ढाल प्राण फूक, उसे जीवंत बनाने में लगे हैं।
कुछ ऐसा ही दृश्य मंसूरचक के बाजारों में देखने को मिल रहा है।
चन्द्रदेव झा ने बताये कि सोहलवीं सत्रहवीं शताब्दी में कुशेश्वर पंडित के पूर्वजों ने एक से बढ़कर एक मूर्ति का निर्माण किया करते थे। वह मिट्टी को चाहे जो भी रूप दे सकें। देखा जाए तो आधुनिक युग में मिट्टियों का घोर अभाव हो गया है। फिर भी मूर्तिकारों ने एक से बढ़कर एक मूर्तियां बनाया करते हैं।
मंसूरचक का नाम बिहार ही नहीं अनेक राज्यों में विख्यात है। यहां की मूर्तियां देश-विदेश में बेची जाती हैं। आज देखा जाए तो मूर्तिकारों ने अपनी पहचान चांद पर ले गया है।
कला एक ऐसी जीवंत प्रक्रिया है। जो हमेशा बिखेरने की चीज है। कृष्ण जन्म अष्टमी में प्रखंड और अनुमंडल क्षेत्रों में मंसूरचक के मूर्तिकारों ने बहुत दूर दराज तक मूर्ति बनाने जाया करते हैं। इन लोगों ने मिट्टी को विभिन्न रूप से तैयार कर मिट्टी में जीवंत आत्मा लाते हैं। वह मिट्टी की मूर्ति तो कभी-कभी देखने में ऐसा लगता है कि इनके मुख से न जाने कब आवाज निकल जाए। यह काफी आकर्षक देखने में लगते हैं।
मूर्ति का निर्माण कर रहे मूर्तिकार रेशम पंडित को मानो तो सैनिकों की एकता, देश की सुरक्षा के लिए सब से बड़ी बात है। वही जनार्दन पंडित ने बताया कि प्रकृति और पुरुष का गहरा संबंध रहा है। भगवान गणेश की आकृति बनाने वाले कलाकार पिंटू पंडित ने बताया कि कोई भी शुभ काम आरंभ करने के पहले भगवान गणेश की आराधना होती है।
आज मंसूरचक में मूर्तिकला पूरी तरह विकसित हो गई है। इसको बनाने वाले कलाकार मूर्तियां इस तरह के बनाते हैं कि लगता है जैसे मूर्तियां बोल पड़ेगी। इस क्षेत्र का पहचान मूर्तिकला में दूर-दूर तक फैला हुआ है।