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छह दिवसीय 9वें आशीर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आगाज

महोत्सव में उपस्थित केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा, विधायक कुंदन सिंह और मेयर पिंकी देवी
महोत्सव में उपस्थित केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा, विधायक कुंदन सिंह और मेयर पिंकी देवी

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने किया उद्घाटन

महोत्सव के पहले दिन आशीर्वाद रंगमंडल की प्रस्तुति कठकरेज का मंचन

नाटक ने किया दर्शकों को भाव विभोर

बेगूसराय, 17 दिसम्बर 2023

16 दिसम्बर से आशीर्वाद रंगमंडल बेगूसराय द्वारा 9वें आशीर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आगाज हुआ। महोत्सव का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा, नगर विधायक कुंदन कुमार, महापौर पिंकी देवी, शिक्षक नेता सुरेश प्रसाद राय, वरिष्ठ रंग निर्देशक अवधेश सिन्हा, असम के रंग निर्देशक दयाल कृष्ण नाथ और रंगमंडल अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह एवम सचिव अमित रौशन ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उद्घाटन संबोधन में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रंगमंच एक जीवंत विधा है, यहां रिटेक नही होता है, पहले गांव गांव में इस तरह का कार्यक्रम होते थे अब इस विधा को और बढ़ाने की जरुरत है। सांसद राकेश सिन्हा ने कहा की रंगमंच जीवंत समाज का उदाहरण है, इसमें सभी को सहयोग करने की जरुरत है। महोत्सव के पहले दिन आयोजक संस्था फेस्टिवल डायरेक्टर सह रंग निर्देशक अमित रौशन के निर्देशन में नाटक कठकरेज का मंचन किया गया। नाटक के मर्मस्पर्शी संवाद से दर्शक काफी भावुक हो गए।


कहानी में गंगा बाबू और उनकी पत्नी कांति को दो बेटे अजय और विजय थे। बाद में गंगा बाबू एक सड़क किनारे खोमचे के पास जूठा खाकर जीवन यापन करने वाले लड़के रंजन को घर ले आते हैं।
समय के साथ तीनों बड़े होते हैं, गंगा बाबू का बड़ा बेटा अजय पढ़ लिख कर सदा के लिए अमेरिका चला जाता है। दूसरा बेटा विजय क्रिकेट में आगे बढ़ गया। बाद में प्रेम विवाह कर घर जमाई बन जाता है।


इस प्रकार गंगा बाबू और कांति के बुढ़ापे का सहारा रंजन बनता है। रंजन की दिलचस्पी दुकान में जायदा थी वो गंगा बाबू को बहुत साथ देता है। एकबार कांति बीमार हो जाती है लेकिन सुचना देने पर भी उनके अपने दोनों बेटे नहीं आते है। तो गंगा बाबू निराश होकर कांति का ऑपरेशन कराते हैं। उसको खून की रंजन देता है और वो बच जाती है। उसके बाद गंगा बाबू मान लेते हैं कि उनका एक ही बेटा है रंजन। गंगा बाबू रंजन की शादी अपने ही जाति बिरादरी की लड़की से करने का फैसला करते हैं जिसका उनकी बिरादरी के लोगो ने विरोध किया। इसपर गंगा बाबू ने पंच परमेश्वर के खिलाफ जाकर रंजन की शादी पढ़ी लिखी लड़की से कर देते है। जो रंजन को पसंद नहीं करती। वो रंजन को परेशान करती है। और एक दिन रंजन परेशान होकर अपनी पत्नी के साथ बिना गंगा बाबू से बात किए घर छोड़ कर चला जाता है, उसके जाने के बाद गंगा बाबू और कांति टूट जाते हैं। लेकिन गंगा बाबू सोचते हैं की उन्होंने तो रंजन को अपना बेटा मान ही लिया था तो वो कट्ठकरेज कैसे हो गया।

एक सुबह दरवाजे खोलते ही सामने रंजन रहता है, दोनो को प्रणाम करता है। रंजन, गंगा बाबू को कहता है की आप दोनो तो मेरे लिए भगवान हैं। मैं तो उस शूर्पनखा को उसके बाप के घर छोड़ने गया था जो इस घर को लंका बनाने पर तुली हुई थी। और वो दुकान खोलने चला जाता है। बाद में गंगा बाबू ने बहु को भी समझा कर घर ले आये और सब ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे। नाटक में गंगा बाबू की भूमिका मोहित मोहन, कांति की भूमिका कविता कुमारी, रंजन की भूमिका कुणाल भारती, बहु की भूमिका कृष्णा कुमारी, सूत्रधार की भूमिका सचिन कुमार और अरुण कुमार, ग्रामीण की भूमिका में बिट्टू कुमार, अरुण, सचिन कुमार ने निभाया। प्रकाश संयोजन सचिन कुमार और संगीत संयोजन सूरज कुमार ने किया। निर्देशन और परिकल्पना अमित रौशन की थी

By National News Today

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