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हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के चतुरस्र गायक डॉ वसंतराव देशपांडिजी का जन्मदिन पर विशेष

न्यूज डेस्क ::–

2 मई 2020 शनिवार

@ प्रतिभासंपन्न कलाकार की जन्मशताब्दी के उपलक्ष में उनकी यादों को ताजा कर समर्पित आदरांजली

प्रासंगिक-वसंत-वैभव

नितीन सप्रे, उपसंचालक, डी डी न्यूज, दिल्ली

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में घराने की परंपरा रही है। वसंतरावजीने अपने संगीत को किसी एक घराने के दायरे मे बंदिस्त नही किया और विभिन्न घराने की खुबीयोंको अपनी गायकी मे ढाल दिया था। जन्म दिवस पर विशेष…

बरसात के मौसम की एक शाम। बरसाती झडी से बचने हेतू पांच-छ: आयु का एक बालक किसी इमारत की आड खडे होकर अपनी ही धुंद में कुछ गा रहा था। अचानक कंधे पर किसी बुजुर्ग के हाथ रखने से बालक अपनी धुंद से बहार आया। सतह तौर पर देखें, तो एक अतिसामान्य घटना।लेकिन वो शाम विशेष थी और वो घटना भी। उस शाम की इस घटना के गर्भ में था विश्व स्तरीय तेजोमयी गंधर्व। जी हां वो हाथ था नागपुर के श्रीराम संगीत विद्यालय के पारखी गुरू श्री शंकरराव सप्रेजी का और जिस कंधे पे वो रखा गया था वो था अलौकिक प्रतिभा के धनी, संगीत क्षेत्र को ललामभूत, डॉक्टर वसंतराव देशपांडेजी का।

ऊस शाम नन्हे वसंत के सुरीले स्वर सुनकर शंकरराव सप्रेजी, जो की संगीत शिक्षक थे, बेहद प्रभावित हुए।वो उसे उपर ले गए।नाम पता पुछा।फ़िर क्या क्या गाते हो? गाना किस से सिखां? आदी जानकारी ली।भजन, लोकसंगीत, अन्य घरेलू गीतों की अनौपचारिक शिक्षा मिठे सुरों की धनी अपनी माताजी से मिली यह बात वसंत ने बताई और मराठी संगीत नाटक ‘मृच्छकटिक’ के ‘जन सारे मजला म्हणतील की’ यह और अन्य कुछ गीत बडी सहजता से सुनाए। शंकरराव जी बहुत प्रसन्न हुए और छोटे वसंत को उसके घर छोड़ने चल दिये। घर पर जैसे ही माताजी से मुलाकात हुई, बालक को संगीत शिक्षा हेतू खुद को सुपुर्द करने की अर्जी की। माताजी ने आर्थिक स्थितीवश फिस देने में असमर्थता का जीक्र करते ही, फिस की कोई बात ही नही, बस बेटे को अपनी तालीम में संगीत शिक्षा की अनुमति देने को कहा। स्कूल की शिक्षा न छोड़ने की शर्त पर माताजी ने हां कर दी और छोटे वसंत की संगीत तालीम जो नागपुर में श्रीराम संगीत विद्यालय में प्रारंभ हुई वो लाहौर में असद अली खां साहब से गंडाबद्ध तरिकेसे राग मारवा की दीक्षा पाकर सफल संपूर्ण हुई।

श्रीराम संगीत विद्यालय में अध्ययन करते समय, वह और उनके सहपाठी राम चीतलकर (सी रामचंद्र) उस समय की मूक फिल्मों के पार्श्व संगीत के लिए, नागपुर में बर्डी इलाके की रीजेंट टॉकीज में क्रमश:तबला और हारमोनियम बजाने जाते थे। वसंतराव के मामाजी का संगीत मंडली में आना जाना था। मामाजी के साथ, वसंत ने कई नाटक देखें और उनका ध्यान मास्टर दीनानाथ के गायन शैली की ओर आकर्षित हुआ।दिनानाथजी ने वसंत से ‘शूरा मी वंदिले ’, ‘जिंकीते जगी ती’ और ‘परवशता पाश दैवी ’ इन पदों की तालीम खुद होकर करवाई। शंकरराव ने वसंत को अपनी पसंदीदा शैली सीखने की आज़ादी दी थी। लाहौर मे दूसरे मामाजी के उपयुक्त मार्गदर्शन ने वसंत की यह दुविधा हल करने में मदद की।

वसंत लाहौर गए, स्कूल में प्रवेश किया और मामाजी के परिचित कई खां साहब की गायकी सुनी। स्कूल से खन्ना नाम का एक दोस्त उसे एक फकीर के पास ले गया, जो रावी नदिपार, शहादरा (जहाँगीर की कब्र) में रहता था। यह वही असद अली खां थे, जिनसे वसंत ने एक कुएँ के कांठ पर बैठ कर, तीन-चार महीनों तक राग मारवा मन मस्तिष्क और गले में बसाया था। इस एक राग की तालीम कुछ इस तराह से हुई की वसंत को सभी राग रागिनीओं का दर्शन हुआ। खां साहब ने वसंत को कहां, “जाओ अब तुम गायक हुए। एक राग आया सारा संगीत आया”। आगे कहां, “एक साधे तो सब साधे, सब साधे तो कुछ नाही साधे”। बस ये ही वो आशीर्वचन थे जिससे वसंत का… वसंतराव…..डॉक्टर वसंतराव होने का मार्ग प्रशस्त किया।

वसंतराव बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न थे। उन्हे एक सच्चा संगीत विशेषज्ञ कहा जा सकता है, क्योंकि गायन, वादन और नृत्य यह संगीत की तीनों विधाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी। केवल इतना ही नहीं, बल्कि मैंने यह भी पढ़ा है कि वह एक अच्छे नकलची थे। कोई भी तुरंत विश्वास नहीं करेगा कि वह आजीविका के लिए मिलिट्री अकाउंट्स में क्लर्क के रूप में काम करते थे। लेकिन यह सच है। मैंने सुना है कि किसी ने वसंतरावजी को गुनगुनाते हुए या रियाझ करते हुए नहीं देखा। शुरुआती दिनो मे घर इतना छोटा था कि तानपुरा रखने तक की कोई जगह नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है की शायद पिछले जीवनकाल में रियाझ पूर्ण करके, परमात्मा की अनुभूति दिलाने वाला संगीत पेश करने उनके इस जीवन का प्रयोजन था।

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में घराने की परंपरा रही है। वसंतरावजीने अपने संगीत को किसी एक घराने के दायरे मे बंदिस्त नही किया और विभिन्न घराने की खुबीयोंको अपनी गायकी मे ढाल दिया था। इसी कारण परंपरावादी उन्हे अक्सर उनके घराने के बारे मे टोकते थे।ऐसे सभी रूढीप्रिय लोगों को वसंतरावजी बडा दो टुक जबाब देते थे। वे कहते थे, “मेरा घरांना मेरे साथ शुरू होता है”। इसी तरह ” सुनने वालों को यह पता चले की मैं ताल मे गाता हूँ, इस लिये तबलजी को साथ लेता हूँ” जैसे कथन अन्य किसी गायक कहता, तो इसे अहंकारोक्ती ही माना गया होता, मात्र वसंतरावजी का अधिकारही कुछ ऐसा था की उनके जुबानी यह शब्द बिल्कुल खटकते नही थे। दूसरी ओर, खुद एक महान गायक होने का गर्व उन्हे कभी छुआ तक नही। गान विदुषी हीराबाई बडोदेकर के विदेश दौरे को तबलजी की बीमारी के कारण रद्द नहीं करना पडे, इसलिए उन्होंने खुद एक तबलजी के रूप में उनके साथ दौरा किया। उन्होंने हीराबाई के घर पर निजी बैठक में दरी बिछाने के काम को भी कभी कम नहीं माना। नए कलाकारों की छोटी- मोटी गलती को संभालने की उदारता उनमें थी। मेघमल्हार नाटक के सर्वेसर्वा गायक अभिनेता राम मराठे थे और वसंतराव उस नाटक मे उनके मित्र की भूमिका निभा रहे थे। रिहर्सल के दौरान, रामभाऊ की मां बीमार पड़ गईं और वे समय से पहले संगीत निर्देशन को पुरा करने मे असमर्थ थे। ऐसे मे वसंतरावजी ने अपने पदों का संगीत खुद किया लेकिन बडी सहजता से संगीत निर्देशक के रूप में अकेले रामभाऊ का नाम देने को अनुमति देकर अपनी उदारता का परिचय दिया।

मराठी संगीत नाटक को पुनर्जीवित करने में ‘कट्यार काळजात घूसली’ नाटक की बड़ी भूमिका है। वसंतराव ने अपने बेमिसाल गायन और वास्तवदर्शी अभिनय से नाटक को अविश्वसनीय उंचाईपर पहुँचाया। हालांकि, यह विश्वास करना मुश्किल है कि वसंतराव, खां साहब की भूमिका के लिए पहली पसंद नहीं थे। इस संदर्भ में, मैंने इस नाटक के निर्माता प्रभाकर पणशिकर से जो किस्सा सुना वो कुछ इस प्रकार………………

पणशीकरजी ने पहले खां साहब की भूमिका के लिए तत्कालीन गायक नट प्रसाद सावकरजी से पूछा। उस समय, मराठी संगीत नाटक के पद इतने लोकप्रिय थे की, मान धन, अभिनय की अपेक्षा मराठी संगीत नाटक के गीतों की ध्वनि मुद्रिका की बिक्री से अधिक प्राप्त होता था। चूंकि इस नाटक मे एक भी मराठी गीत ना होने से प्रसाद सावकरजी ने अभिनय करने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। बाद में मराठी संगीत रंगभूमी के एक अन्य दिग्गज राम मराठेजी का नाम आगे आया, पर यह महसूस किया गया की उनका व्यक्तित्व, चाहे कितना भी मेकअप लगाया जाए, वह खां साहब की भूमिका के अनुरूप नहीं लगेगा। उस समय, किसी ने वसंतरावजी का नाम पणशीकरजी को सुझाया। वे उनसे पूछने के लिए पुणे गए लेकिन वसंतराव के मुंबई में होने का पता चलने पर, वह मुंबई में वसंतराव से मिले और जब उन्होंने बताया कि वह एक संगीत नाटक कर रहे हैं, तो वसंतराव ने उनसे कहा, “आपका संगीत से क्या नाता?” इस पर, पणशीकरजी ने खुलासा किया कि वह नाटक के निर्माता हैं और संगीत अभिषेक बुवा द्वारा किया जाएगा। उन्होंने वसंतराव को नाटक की संहिता दी। इस पर, वसंतराव ने कहा, “संहिता रख देना। यदि इसे पढ़ने के बाद पसंद आती हैं, तो वह कल रिहर्सल के लिए आएँगे, और यदि ना आऊ तो संहिता को वापस ले जाने की व्यवस्था करें”। सभी मराठी संगीत नाटक प्रेमियों की किस्मत बुलंद थी, चुंकी दूसरे दिन वसंतराव ने रिहर्सल में हिस्सा लिया। सभी जानते हैं कि आगे क्या हुआ। खां साहब की भूमिका में, वसंतराव ने ऐसे प्राण डाले कि ‘कट्यार’ और वह द्वैत नहीं अद्वैत बन गए।

इस शीर्षस्थ शास्त्रीय संगीत गायक को सामान्य रसिक मान्यता ‘कट्यार’ पश्चात मिल पाई। एक समारोह में श्रीमती फैयाज, जिन्होंने वसंतराव के साथ ‘कट्यार’ नाटक के कई प्रयोग किए थे, कहा की वसंतराव हर प्रयोग में पद (गीत) नये अंदाज़ मे पेश करते थे। केवल इतना ही नहीं, बल्कि वसंतराव इतने महान अदाकार थे की कई स्त्री सुलभ मुरके, जो एक स्त्री होकर भी उनसे नही हो पाते, वसंतराव उन्हे साभिनय सिखाते थे।

वसंतराव चतुरस्र प्रतिभा के धनी थे। मराठी के साहित्यकार पी.एल. देशपांडे ने वसंतराव के गायन शैली का बडा सटीक वर्णन किया है। जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार हैं, “वसंता का गायन धीमी गतीसे परंपरा की पालकी में सज धज के जानेवाला नाही हैं । घाटियों से बेतहाशा दौड़ने वाले घुड़सवार की तरह उसकी गायकी की मूर्ति है। भरी धूप में पलाशबन में खीलें अग्निपुष्प जैसी ये गायकी, इसे सराहना हो, तो धूप को सहने लायक जवानी का होना जरूरी है।

ऐसा कहा जाता है कि नागपुर के ताजुद्दीन बाबा ने वसंतराव की माँ को बताया था कि लोग उसके पशच्चात पचास साल बाद जानेंगे की उन्होंने क्या खोया है। वासंतराव को रसिकमान्यता बडी देर से मिली। लेकिन इस बात से उनसे से ज्यादा रसिकजनो काही नुकसान हुआ। उन्होंने पी. एल. देशपांडे के समक्ष स्पष्ट रूप से अपनी भूमिका रखी। उन्होंने कहा था, “अरे भाई, मान सम्मान क्या बात है! जब गले के अंदर संगीत की दौलत हैं, तो गले के बहार हार नहीं पडे तो क्या बिगडा?” ऐसा निर्मोही निरहंकारी अवलिया गायक सदीओं में कभी जन्म लेता है। वसंतरावजी के जयंती पर उन्हे नमन।

 

 

 

By National News Today

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