बरौनी-बेगूसराय ::–
राजीव नयन ::–
29 जनवरी 2020 बुधवार
गणतंत्र दिवस आया और चला गया। लेकिन देश और समाज के लिए कई सवाल छोड़ गया। बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफॉर्म और उसके आस-पास रहने वाले अनाथ, बेसहारा, खानाबदोश की ज़िंदगी गुज़ार रहे बालश्रमिक बच्चों के द्वारा मनाया गया गणतंत्र दिवस अपने आप में अनोखा है।
फटे-पुराने चिथड़े में खुद को समेटे हुए, देश के एक सच्चे सिपाही की तरह हाथों में तिरंगा झंडा उठाये संबिधान का प्रस्तावना दुहराते नज़र आये। लोगों के कदम अनायास ही ठिठक गए जब विभिन्न ट्रेनों और रेलवे प्लेटफॉर्मों पर झाड़ू लगाने, कचड़ा बीनने और भीख माँग कर किसी तरह अपना पेट पालने वाले बच्चों को तिरंगा के सामने -‘जन गण मन अधिनायक जाय हे भारत भाग्य विधाता’ गाते सुना। है ना अजीब बात ? रहने को घर नही, सोने को विस्तर नही, दो जून की रोटी बामुशक्कल जुगाड़ कर अपनी ज़िंदगी रेलवे प्लेटफॉर्म और फुट-पाथ पर गुजारते हैं फिर भी इन्हें गर्व है -‘ सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा , हम बुल-बुले हैं इनके …ये गुल्दास्ताँ हमारा ‘।
ये बच्चें बाल अधिकार और शिक्षा जैसे मौलिक अधिकारों से पूरी तरह वंचित हैं। किसी की सरकार बने या किसी की सत्ता गिरे इन बच्चों की ज़िंदगी पर कोई फर्क नही पड़ता। ना बीते हुए कल का अफसोस ना आने वाले कल की परवाह। ऐसे बच्चों की सिर्फ एक ही नाम और पहचान है ‘ प्लेटफार्म का कल्लर’ । चीथड़ों में लिपटी इनकी ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती है। सवाल यह उठता है कि नौनिहालों की ऐसी बनती बिगड़ती यह तस्वीरें क्या सिर्फ बरौनी जंक्शन की ही हैं ? शायद नही । बरौनी जंक्शन सहित बिहार और भारत के तमाम छोटे-बड़े रेलवे प्लेटफॉर्मों पर आपको ऐसे ‘कल्लर’ देखने को मिल जाएंगे जो शिक्षा और समाज के मुख्यधारा से पूरी तरह बंचित चुनौतीपूर्ण ज़िन्दगी जीने को मजबूर है।
जिसे समाज के हर वर्ग के लोगों ने नज़र अंदाज़ किया। चाहे वो राजनेता हों, संबंधित विभाग, तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता या फिर मीडिया पर्सन। सभी ने इसे आम ज़िन्दगी का हिस्सा मान अनदेखा किया। कहने को तो बालश्रम व आश्रयहीन बच्चों को शिक्षा और समाज के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार, विभाग, आयोग और कई सरकारी व गैर सरकारी संगठन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रयास कर रही है। सरकार प्रति वर्ष ऐसे आयोग और संगठनों पर करोड़ो रुपये खर्च भी करती है । फिर भी भारत मे बढ़ते मानव तस्करी, बालश्रम, बच्चों में बढ़ती अपराध और नशे की प्रवृति एवं विभिन्न रेलवे प्लेटफार्म और फूट-पाथों पर बढ़ते ऐसे बेसहारा बच्चों की संख्या कही ना कही इस बात का प्रमाण है कि मानव तस्कर , बाल श्रम, बाल अपराध उन्मूलन और बाल अधिकार एवं शिक्षा का मौलिक अधिकार के क्षेत्र में सरकार की हर कोशिशें बौना साबित हो रही है।
ये अलग बात है कि सरकार और संबंधित विभाग आंकड़ों का जादू दिखा अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपाए जा रहे हैं। यद्यपि एक स्थानीय युवा शिक्षक दंपति अजीत कुमार एवं शबनम मधुकर के द्वारा किये जा रहे लगातार प्रयास से बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफार्म सहित आस-पास के फुट-पाथ पर रहने वाले तमाम आश्रयहीन और बेसहारा बच्चों को शिक्षा और समाज के मुख्यधारा से जोड़ने की समुचित व्यवस्था करने को ले देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर तमाम उच्चाधिकारियों का आदेश और दिशा-निर्देश जारी होता रहा, लेकिन अब तक कोई ठोस योजना धरातल पर नही उतर पायी।
जारी पत्रों का असर नही होने के कारण बरौनी सहित बिहार और भारत में आज भी लाखों बेसहारा और आश्रयहीन बच्चों का एक मात्र आश्रयस्थल रेलवे प्लेटफार्म या फूट-पाथ ही है। आखिर कौन हैं ये बच्चे …? – बरौनी जंक्शन व इसके आस-पास दर्जनों अनाथ, बेसहारा और आश्रयहीन बच्चे हैं जिनकी उम्र 5 से 14 साल के बीच है। पढ़ने-लिखने की उम्र मे ये बच्चे रेलवे प्लेटफार्म और ट्रेनों में झाड़ू लगाने, कचरा बीनने, भीख मांगने या गुटखा-सिगरेट बेचने का कार्य कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर अपना गुजर-वसर करते हैं।
भूख, कुपोषण, अशिक्षा और आवारागर्द ज़िन्दगी ने इन बच्चों को उम्र से पहले ही अपराधी और नशे का आदि बना दिया। इन बच्चों में मुख्यरूप से वैसे बच्चे हैं जो यात्रा के दौड़ान अपने परिवार से बिछड़े, घर से भागे, रिश्तेदारों या अभिभावक के द्वारा घर से निकाले, देह व्यापार के धंधे में लगे महिलाओं के अवैध संतान या फिर वैसे बच्चे जिनके तथाकथित अविभावक स्वयं बालश्रम या भीख मांगने जैसे कामो में लगा रखा है। हालाकि इन बच्चों को शिक्षा और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से बेगूसराय जिला के फुलवड़िया थाना अंतर्गत शोकहरा पंचायत-02 निवासी शिक्षक अजीत कुमार पोद्दार अपनी पत्नी शबनम मधुकर व पुत्र दिव्यांशु राज और आर्यन राज के सहयोग से गत कई वर्षों से रेलवे प्लेटफार्म पर ही ऐसे बच्चों को पढ़ाने -लिखाने का कार्य कर रहे हैं।
तब स्थानीय लोगों और रेल प्रशासन का भी सहयोग उन्हें मिला। लेकिन वृहत पैमाने पर और सुचारू रूप से शिक्षा और नशा-मुक्ति अभियान चलाने की योजना को ले शिक्षक दंपति ने विभिन्न मंत्रालयों, आयोगों और संबंधित उच्चाधिकारियों से पत्राचार किया। संवंधित विभाग के द्वारा स्थानीय अधिकारियों को आदेश-निर्देश जारी होने एवं विभिन्न समाचार पत्र -पत्रिकाओं में इस मामले को प्रमुखता से प्रकाशित किये जाने के उपरांत शिक्षक अजीत एवं उनकी पत्नी शबनम मधुकर के ऊपर इस अभियान को बंद करने के लिए कई संबंधित विभाग के अधिकारियों के द्वारा दबाव बनाया जाने लगा। वहीं शिक्षा विभाग व रेल प्रशासन ने शिक्षक दंपति को रेलवे प्लेटफार्म पर इस शैक्षणिक और नशामुक्ति अभियान को बंद अविलंब बंद करने का आदेश जारी कर दिया।
इस संदर्भ में शिक्षक अजीत ने बताया कि -‘ मैंने अपनी पत्नी शबनम मधुकर और बरौनी, राजवाड़ा निवासी मित्र प्रशांत कुमार के सहयोग से 05 फरबरी 2013 से इस अभियान को आरंभ किया था। बाद में मेरे पुत्र दिव्यांशु राज और आर्यन राज भी हमारे इस शैक्षणिक और नशा-मुक्ति अभियान में सहयोग करने लगे। मुझे लगा एक अच्छे सामाजिक कार्यों में शिक्षा विभाग एवं प्रशासन का सहयोग और समर्थन मिलेगा। लेकिन मुझे नही पता था कि एक सही और सामाजिक कार्य करने वालो का रास्त इतना कठिन और काँटों भरा होता है। यद्यपि मुझे स्थानीय लोगों के भरपूर सहयोग मिला। लेकिन मुझे शिक्षा क्या किसी भी विभाग और स्थानीय पदाधिकारियों से किसी प्रकार का सहयोग नही मिला।
इन बच्चों के लिए भोजन, वस्त्र, किताब-कॉपी व अन्य खर्च की व्यवस्था मुझे खुद के संसाधनों से जुटाना होता है। एक तरफ मुझे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। वही उच्चाधिकारी का इस अभियान को बंद करने का दबाव तो दूसरी ओर संबंधित स्थानीय अधिकारियों और रेल प्रशासन का असहयोगात्मक रवैये के कारण इस अभियान को जारी रखना मुश्किल हो गया। रेल प्रशासन के द्वारा मेरे इस चलंत स्कूल को बंद करवा दिया गया।
‘भारत जैसे गणतंत्र देश में आज़ादी के 73 साल बाद भी क्या ये बच्चे आज़ाद है ? क्या इन्हें वे सारे अधिकार और आज़ादी मिली जो इस गणतंत्र और आज़ाद भारत मे आम लोगों या बच्चों को प्राप्त है ? आखिर कौन है ऐसे लाखों नौनिहालों की गुमराह हो रही ज़िन्दगी और खो रहे बचपन का जिम्मेवार ? सरकार , विभाग, प्रशासन या हम सभी जो ऐसे बच्चों को आम ज़िन्दगी का हिस्सा मान नज़र अंदाज़ कर आगे बढ़ जाते है ? क्या ऐसे ही गणतंत्र भारत का सपना देखा था राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, चाचा नेहरू और डॉ. भीम राव अम्बेडकर जैसे संबिधान निर्माताओं ने ?
सरकार, विभाग और प्रशासन के साथ-साथ आमलोगों को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि ये बच्चे भी हमारे देश और समाज का एक अंग है। इन बच्चों का भी वे सारे अधिकार हैं। जो भारतीय संबिधान के अनुसार आम नागरिको या बच्चों को प्राप्त है। उन्हें भी पूरा अधिकार है अपना बौद्धिक और सामाजिक विकास करने का। ये जानते हुए भी अगर हम किसी बच्चे को शिक्षा और बाल अधिकार से वंचित करते हैं या उनके अधिकारों को नज़र अंदाज़ करते हैं तो यह ना सिर्फ बाल अधिकार / मानवाधिकार का हनन है वल्कि बालश्रम और भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देना हैं।