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स्त्री संवेदना के मार्मिक पहलुओं को संवेदनशील और बेबाकीपन के साथ प्रस्तुत किया गया है लघु फ़िल्म “जूस” में

मंझौल-बेगूसराय ::–

अंकित कुमार झा ::-

16 नवम्बर 2019

शनिवार

आज शनिवार को रामचरित्र सिंह महाविद्यालय, मंझौल में स्त्री विमर्श पर केंद्रित नीरज घायवान निर्देशित हिंदी लघु फ़िल्म “जूस” का प्रदर्शन महाविद्यालय के भूगोल विभाग में किया गया।

फ़िल्म में स्त्री संवेदना के मार्मिक पहलुओं को संवेदनशील और बेबकीपन के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह फ़िल्म प्रतीकात्मक रूप से मध्यवर्गीय परिवार की समस्याओं एवं स्त्री-पुरुष के बीच के विभाजन को अभिव्यक्त करती है। फ़िल्म में सेफली साह के चरित्र के माध्यम से मध्यवर्गीय स्त्री की समस्या एवं स्त्री के प्रति पुरुषों का व्यवहार को दिखाया गया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रधानाचार्य डॉ. नवीन कुमार सिंह ने फ़िल्म के माध्यम से अभिव्यक्त संवेदनाओं को सामाजिक यथार्थ से जोड़ते हुए उसके व्यवहारिक पक्षों पर अपनी बात रखी। इन्होंने स्त्री-विमर्श के मूलभूत सिद्धांतों पर अपनी बात रखते हुए अपने जीवनानुभव से उद्धरण देकर यह स्पष्ट किया कि एक स्त्री अपने जीवन में पिता के प्रति सम्मन प्रकट करती है क्योंकि उसी पिता के सहयोग और प्रेरणा से अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है पर वह अपने पति के प्रति आलोचनात्मक हो सकती है।अभिप्राय यह कि सामाजिक संबंध और व्यक्तिगत अनुभव ही हमें किसी विमर्श को देखने समझने का नजरिया देता है।

कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. रामनंदन प्रसाद सिंह ने फ़िल्म की समीक्षा करते हुई उसे पिछली सदी तक सीमित बताया और आज के सन्देभ में उसकी प्रासंगिता पर प्रकाश डाला,  रविकांत आनंद ने फ़िल्म की आलोचना को आगे बढ़ते हुए कहा की आज महाविद्यालय में लड़कों से ज्यादा लड़कियों की भागीदारी है जो एक सुखद भविष्य का संकेत देता है।

डॉ. बिपिन कुमार ने फ़िल्म के शीर्षक की सार्थकता को केंद्र में रख कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि आज मध्यवर्गीय स्त्रियां किस तरह किंचन से आंगन तक पीस रही है। डॉ. गोबिंद कुमार पासवान ने स्त्री जीवन की विडंबनाओं पर बात करते हुए इस समस्या से उबरने के लिए पुरुष समाज को सामने आने की अपील की।

मनोविज्ञान विभाग की प्राध्यापिक सविता कुमारी ने परिवार और समाज मे स्त्री-पुरुष की आपसी साझेदारी पर बल देते हुए फ़िल्म में चित्रित प्रत्येक पहलुओं पर अपनी बात रखी। एक बेहतर समाज के लिए इन दोनों की आपसी सहभागिता को महत्वपूर्ण बताया तथा स्त्री गरिमा ही एक बेहतर समाज बनाने में सफल हो सकता है इस पर बल दिया।

डॉ. निसार अहमद ने स्त्री-पुरुष के बीच के सामाजिक और प्राकृतिक विभेद पर विस्तार से बात करते हुए भारतीय समाज में व्यप्त द्वंद्व को विस्तार से रखने का प्रयास किए।

ऋषिकेश कुमार ने स्त्री पुरुष के प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखने पर बल दिया। डॉ. कृष्ण कुमार पासवान ने फ़िल्म पर अपनी बात रखते हुए कहा कि पुरुष सत्तात्मक समाज ने एक मध्यवर्गीय परिवार के घर को कई हिस्सों में कैसे बांट दिया है इसका सफल चित्रांकन यह फ़िल्म करता है। उन्होंने कहा कि किसी समाज के विकास का प्रमुख पैमाना यह है कि उस समाज के प्रत्येक गतिविधियों में स्त्री की भागीदारी कैसी है। महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने भी फ़िल्म में अभिव्यक्त संवेदनाओं पर खुल कर अपनी बात रखी।

पूरा कार्यक्रम प्रधानाचार्य डॉ. नवीन कुमार सिंह के निर्देशन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का समायोजन  रविकांत आनंद ने किया जिसका संचालन डॉ. कृष्ण कुमार पासवान ने किया एवं आभार प्रकट करते हुए महाविद्यालय के पुस्तकालय अध्यक्ष गौरीशंकर मिश्र ने बताया कि महाविद्यालय में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा है। प्रधानाचार्य के मार्गदर्शन में महाविद्यालय कामयाबी का प्रतिमान स्थापित करेगा।

कार्यक्रम में सहायक प्राध्यापक पूर्णिमा कश्यप, शोधार्थी विकास कुमार, मनोविज्ञान विभाग के प्रयोगशाला सहायक महेंद्र महतो, सभी शिक्षक, शिक्षकेत्तर कर्मचारी सहित लगभग 50 विद्यार्थी उपस्थित थे।

By National News Today

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