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द प्लेयर्स एक्ट द्वारा आयोजित चार दिवसीय रंग उत्सव का आगाज ::: पहले दिन नाटक नारीबाई का मंचन

बेगूसराय ::–

विजय श्री ::-

19 सितंबर 2019
गुरुवार

द प्लेयर्स एक्ट द्वारा आयोजित 18 से 21 सितम्बर तक चलने वाले चार दिवसीय थियेटर फेस्टिवल रंग उत्सव की शुरुआत बुधवार को दिनकर कला भवन में हुई। द प्लेयर्स एक्ट द्वारा आयोजित इस फेस्टिवल के पहले दिन जहाँ प्रथम चरण में उत्सव का उद्घाटन किया गया। वही दूसरे सत्र में नाटक नारीबाई का मंचन किया गया।

इस नाटक की परिकल्पना, निर्देशन और निर्माता फ़िल्म और धारावाहिक सहित रंगमंच की जानी मानी अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी ने किया। नाटक में सुष्मिता मुखर्जी मुख्य रूप से जहाँ तीन औरतों का अभिनय किया। उसके अलावे 23 अलग-अलग छोटे-छोटे पात्रों का भी अभिनय किया। यह एकाँकी नाटक था।

उद्घाटन करते अतिथि

नारीबाई मुख्यतः तीन औरतों की कहानी है। जिसमे एक सुष्मिता जो मध्यम वर्ग की लड़की है। दूसरी सुनयना जो अमीर परिवार से आती है। जिसके पति भी काफी अमीर है। वही तीसरी पात्र नारीबाई है जो एक वेश्या है।

जहाँ सुष्मिता और सुनयना बचपन की एक दोस्त है। सुनयना एक एनजीओ से जुडी ब्लॉगर भी है। वही नारीबाई एक बुंदेलखंड की रहने वाली बेरनी या वेश्या है।

एक बार सुनयना को एनजीओ के द्वारा बुंदेलखंड की बेरनी के रहन-सहन, लोक गीत, राई नृत्य, उसके संघर्ष पर रिसर्च करने का काम मिलता है। जब वो वहां जाती है तो उसके बात व्यवहार से सुनयना ये सोचती है की नारीबाई सिर्फ एक सेक्स वर्कर और कुछ नहीं। वो इस बारे में अपने बचपन की दोस्त सुष्मिता को भी बताती है। कुछ सालों बाद वो बेरनी की बेटी बड़ी होती है। जो वेश्या का काम करने से मना कर देती है। लेकिन दलाल उसे जबरन इस धंधे में लाना चाहता है। बाद में बेरनी की बेटी मुम्बई चली आती है। दलाल के दबाव में वो बार गर्ल की नौकरी करने लगती है।

बाद में आसपास के लोग उसका उसके लोक परम्परा का राई नृत्य देख प्रभावित होते है और उससे राई नृत्य सिखाने को कहते है। बाद में वो राई नृत्य सबको सिखाने लगती है। लोग उसे उसे गुरु माँ का दर्जा देते है। बाद में सुनयना उससे मिलती है और तब जानती है की वेश्या सिर्फ तन का सौदा नहीं करती बल्कि उसका भी एक जीवन है। वो भी जीवन जीने को संघर्ष करती है। उसमे भी भावना है। अपने संघर्ष से नारीबाई बाद में नारीबाई देवी कहलायी।

सुष्मिता मुखर्जी अभिनय करते हुए

नाटक के माध्यम से बताया गया की किसी का जीवन गलत नहीं होता। हर जीवन में एक संघर्ष होता है। संघर्ष के बदौलत एक वेश्या भी गुरु का दर्जा पा सकती है।

इस नाटक का सारा पात्र फ़िल्म अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी ने ही निभाई। उन्होंने तीन भाषाओँ का इसमें उपयोग किया। कहानी काफी दमदार रही। जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

नाटक से पूर्व चार दिवसीय रंग उत्सव का उदघाटन वरिष्ठ रंग निदेशक सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, सदर एसडीओ संजीव कुमार, एडिशनल एसपी अमृतेश कुमार, समिति की संरक्षक स्वप्ना चौधरी, पूर्व मेयर संजय कुमार, रंग निर्देशक अवधेश कुमार, फ़िल्म अभिनेता अमिय कश्यप, आदि ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।

समारोह के फेस्टिवल डायरेक्टर चन्दन कुमार सोनू ने सभी आगत अतिथियों को शाल, पुष्प गुच्छ और मोमेंटो देकर सम्मानित किया।

इस मौके पर राष्ट्रीय स्तर के रंग निदेशक सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ को भारतेंदु राष्ट्रीय रंग सम्मान से सम्मानित किया गया। पुरे कार्यक्रम में समारोह समिति के संयोजक विश्वरंजन सिंह राजू, अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह अमर, मार्गदर्शक राजकिशोर सिंह, अभिषेक कुमार, डा. राहुल सिंह, दिलीप सिन्हा, कुंदन कुमार, गुंजन कुमार, रमण चंद्र वर्मा, नेहा वर्मा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अभिजीत मुन्ना और दीपक कुमार ने किया।

By National News Today

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