बेगूसराय / मुंगेर ::–
@ वट सावित्री व्रत का काफी महत्व है हिंदू धर्म में
मंसूरचक/ वीरपुर/ बरियारपुर(मुंगेर) ::–
वट सावित्री व्रत में स्त्रियां यह पूजन, सौभाग्य प्राप्ति और पति की लंबी आयु की कामना के लिए करती हैं।
इस दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। हर साल वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि आज के दिन 3 जून दिन सोमवार को है।
वट सावित्री व्रत में वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। क्योंकि वट के वृक्ष ने सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा ताकि जंगली जानवर शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके।
ज्योतिषों के अनुसार, वट के वृक्ष में ब्रह्मा, बिष्णु और महेश तीनों का निवास होता है इसलिए महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने सावित्री देवी का कठीन यज्ञ किया और जिससे उन्हें प्रसाद के रूप एक तेजस्वनी कन्या ने जन्म लिया। राजा ने कन्या का नाम सावित्री ही रखा। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। राजकुमारी सावित्री ने साल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में चाहा। उनका राज पाठ किसी ने छीन लिया था। सत्यवान अल्पायु थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी। परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी।
जिसका फल उन्हें बाद में मिला था। सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे और लंबे समय तक वैवाहिक जीवन का आनंद प्राप्त किया।
इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है उसके पति पर भी आनेवाले सभी संकट इस पूजन से दूर होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री के व्रत में पूजा सामग्री का विशेष महत्व होता है। इस दिन की पूजा सामग्री में बांस का पंखा, लाल या पीला धागा, धूपबत्ती, फूल, पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा, अक्षत आदि का होना अनिवार्य है।
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि कर शुद्ध होकर सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी या डलिया में सही से रख लें। फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां पूजा की सामग्री रखें। इसके बाद सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें। फिर अन्य सामग्री जैसे धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि से पूजन करें और कथा का पाठ करें। इसके बाद वट से आशीर्वाद मागें।