न्यूज़ डेस्क, मंसूरचक, बेगूसराय, मिन्टू कुमार।।
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और मंसूरचक प्रखंड मुख्यालय से मात्र चार किलोमीटर दूर साठा गांव में मां वैष्णवी दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना मिथिला पद्धति से होती है।
चंद्रदेव झा, बताते हैं कि 18वीं 19वीं शताब्दी में गांव से होकर बहने वाली बलान नदी के तट पर दूर्गा की चचरी बह कर वहां आ गया और किनारे लग गया। इस बात की खबर गांव में चारो तरफ फैल गई और चचरी को बाहर निकाल सभी ग्रामीणों ने यह निर्णय लिया कि माता स्वयं चलकर गांव आई है, इसलिए उनको साठा गांव में स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू की जाए। तब से ये सिलसिला आज भी जारी है।
यहां की पूजा की सबसे बड़़ी विशेषता यह है कि नवमी की रात माता की प्रतिमा के माथे में फूल खोंसकर उनकी विशेष मनौती पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माता जब पूजा से प्रसन्न हो जाती हैं तो अपने आप वह फूल नीचे गिरने लगते हैं और यही फूल यहां आने वाले भक्तों के लिए सबसे बड़ा प्रसाद होता है।
मंदिर के पुजारी हरिशचंद्र झा ने बताया कि यहां मिथिला पद्धति से माता की पूजा अर्चना की जाती है। यहां प्रतिमा को अंतिम रूप देने के बाद उसे ढका नहीं जाता है। और नवमी की रात फूलहास होने के बाद ही महिलाएं उनकी खोईछा भरती हैं।
यहां की ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से लोग जो भी मांगते हैं माता वैष्णवी उसे निराश नहीं करती हैं। मन्नतें पूरी होने के बाद भक्त अपने पैसों से उनकी प्रतिमा का निर्माण करवाते हैं और चढावे के रूप में सोने चांदी के जेवरात भी अच्छी खासी मात्रा में माता को समर्पित की जाती है।
स्थानीय श्रद्धालु रामबालक चौधरी बताते हैं कि उस समय पूर्वजों की देखरेख में एक मिट्टी निर्मित खपरैल मंदिर में मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती थी। लेकिन अब मंदिर भव्य बनकर तैयार हो चुका है। मंदिर की प्रथम पुजारी बनवारी झा हुआ करते थे।
हरेराम चौधरी बताते हैं कि साठा वाली दूर्गा मैया की महिमा अपरंपार है। यहां सूनी गोद वाली माताओं को मां दुर्गा की आशीर्वाद से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। मैया का महिमा का व्याख्यान चारों ओर फैल चुका है। मिथिला पद्धति से मैया की पूजा अर्चना की जाती है। एवं मंदिर परिसर को प्राकृतिक फूलों से सजाया जाता है। संध्या आरती के साथ देवी जागरण का भी भव्य आयोजन होता है।