Wed. Feb 12th, 2025

बेगूसराय :: जनवादी लेखक संघ ने उपन्यासकार मुंसी प्रेमचन्द की मनाई जयंती

 

बेगूसराय, रवि शंकर झा।।

जनवादी लेखक संघ जिला इकाई, बेगूसराय की ओर से उर्दू- हिन्दी के महान उपन्यासकार- कथाकार मुंसी प्रेमचन्द की 143वीं जयंती कर्मचारी महासंघ के कर्मयोगी सभागार में धूमधाम से मनायी गयी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष डा० चन्द्रशेखर चौरसिया ने की। जबकि संचालन संगठन के सचिव राजेश कुमार ने किया। वहीं इस अवसर पर ‘साम्प्रदायिकता के प्रश्न और प्रेमचन्द’ विषय केन्द्रित परिचर्चा का आयोजन किया गया।

मौके पर संगठन के संरक्षक जनवादी कवि दीनानाथ सुमित्र ने विषय-प्रवेश कराते हुए कहा कि साम्प्रदायिकता के प्रश्न पर प्रेमचन्द स्पष्ट रूप से सचेत थे। इधर वरिष्ठ साहित्यकार उमेश कुंवर ‘कवि’ ने विषय केन्द्रित आलेख पाठ किया।

जलेस बिहार के राज्य सचिव कुमार विनीताभ ने कहा कि मौजूदा दौर में प्रेमचन्द का कथन ‘साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है’, अत्यंत प्रासंगिक है। आज साम्प्रदायिक ताकतों की साज़िश के कारण भारत की साझी संस्कृति की विरासत के समक्ष चुनौतियाँ दरपेश हैं। जिसके मुकाबले के लिए प्रेमचन्द की रचनाएँ राह दिखाती हैं।

स्थानीय गणेश दत्त महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डा० अभिषेक कुन्दन ने बतौर मुख्य वक्ता यह कहा कि साम्प्रदायिकता हर दौर में राजनीतिक सत्ता और पूंजी की चाकरी करती है। देश का मौजूदा परिदृश्य प्रेमचन्द की चिन्ताओं को सच साबित करता है। उन्होंने आगे कहा कि प्रेमचन्द ने अपनी रचनाशीलता और वैचारिक अनुभवों को समृद्ध करते हुए अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों को स्पष्ट रूप से समझ लिया था।

उन्होंने अपने उपन्यासों और अपनी कहानियों में इन चुनौतियों का बखूबी बयान किया है। उन्होंने सन् 1934 में लिखे अपने लेख ‘साम्प्रदायिकता और संस्कृति’ में साम्प्रदायिक शक्तियों से समाज को मिल रही चुनौतियों का विश्लेषण किया और समाधान भी बताया।

गणेशदत्त महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डा० जिकरुल्लाह खान ने कहा कि प्रेमचन्द के समय की साम्प्रदायिक चुनौतियाँ आजादी के अमृत काल में विकराल हो गयी हैं।

जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव दीपक सिन्हा ने कहा कि साम्प्रदायिक और जातीय विकृत मानसिकता वाले तत्वों द्वारा प्रेमचन्द पर हमले करना निन्दनीय है। लेखकों को इस सवाल पर एकजुट होना चाहिए।

परिचर्चा में युवा आलोचक डा० निरंजन कुमार, डा० ललिता कुमारी, कला कौशल, भुवनेश्वर प्रसाद सिंह, रत्नेश झा, संतोष अनुराग तथा अन्य वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इस मौके किसान नेता सुरेश यादव, रणजीत यादव, रमेश यादव, अंकुर सिंह, अनुभव कुमार, संजीव कुमार सिंह समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यप्रेमी मौजूद थे। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन संगठन के उप सचिव डा० निरंजन कुमार ने किया।

By National News Today

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