न्यूज डेस्क, मिन्टू कुमार।।
सामा-चकेवा मिथिलांचल का एक प्रसिद्ध पर्व है। जो बिहार के मिथिला क्षेत्र एवं सीमावर्ती नेपाल क्षेत्र में विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के द्वारा प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में प्रसिद्ध छठ पर्व के अगले दिन से कार्तिक पूर्णिमा तक उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।
यह पर्व प्रकृति पर्यावरण और पक्षियों के अतिरिक्त भाई-बहन के परस्पर स्नेह संबंधों का प्रतीक हैं। मिथिलांचल के प्रसिद्ध लोकपर्व सामा-चकेवा की शुरूआत हो चुकी है।छठ के बाद इस लोकपर्व का अपना अलग ही महत्व है। भाई-बहन का ये त्योहार सात दिनों तक चलता है। सामा-चकेवा के गीतों से गांव गुलजार होने लगे हैं। कार्तिक पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन शाम ढ़लते ही घरों की महिलाएं सामा चकेवा की गीत गाती हैं।उसी दिन खेत में विसर्जित किया जाता है।
रक्षाबंधन और भैया दूज की तरह सामा चकेवा भी भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक पर्व है। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ही उम्रदराज महिला साथ-साथ इसे उल्लास से मनाती है।
इस पर्व की खास बात यह है कि जहां बहनें अपने भाई के दीर्घायु की कामना करती है। वहीं इसके गीत पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया जाता है।
पुराण में भी है उल्लेख।
लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। पंडित श्याम चरण मिश्र बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है।चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपने बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।
सात दिनों तक चलता है यह त्योहार।
7 दिनों तक बहने भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं। सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है। सुहागन महिलाएं गीत गाती है।