बेगूसराय, मिंटू झा।।
रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन, मतलब धागा है। इस पर्व में बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है। और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।
रक्षाबंधन को राखी या सावन के महीने में होने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है। यह श्रावण माह के पूर्णिमा में पड़ने वाला हिंदू तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है।
श्रावणी पूर्णिमा में, रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई पर बंधन बांधे जाने की रीत को रक्षा बंधन कहते हैं। पहले के समय रक्षा के वचन का यह पर्व विभिन्न रिश्तों के अंतर्गत निभाया जाता था। पर समय बीतने के साथ यह भाई बहन के बीच का प्यार बन गया है।
रक्षा सूत्र सिर्फ रेशम की डोर या धागा नहीं, बल्कि बहन भाई के अटूट व पवित्र प्रेम का बंधन है, इस धागे में रक्षा कवच बनने का अद्भुत सामर्थ छिपा है। एक ओर भाई अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी और बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती है।
रक्षा बंधन का इतिहास
एक बार की बात है, देवताओं और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ। युद्ध में हार के परिणाम स्वरूप, देवताओं ने अपना राज-पाठ सब युद्ध में गवा दिया। अपना राज-पाठ पुनः प्राप्त करने की इच्छा से देवराज इंद्र देवगुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे। तत्पश्चात देव गुरु बृहस्पति ने श्रावण मास के पूर्णिमा के प्रातः काल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया।
“येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।”
इस पुजा से प्राप्त सूत्र को इंद्राणी ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया। जिससे युद्ध में इंद्र को विजय प्राप्त हुआ।और उन्हें अपना हारा हुआ राज पाठ दुबारा मिल गया। तब से रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
पौराणिक ग्रंथ महाभारत के मुताबिक एक बार भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ पतंग उड़ा रहे थे। उस समय धागे की वजह से उनकी उंगली कट गई। तब द्रोपती ने बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का कपड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांधा था। भगवान श्री कृष्ण द्रोपती के इस प्रेम से भावुक हो गए और उन्होंने आजीवन सुरक्षा का वचन दिया यह माना जाता है कि चीरहरण के वक्त जब कौरव राज सभा में द्रोपती की सारी उतार रहे थे। तब कृष्ण ने उस छोटे से कपड़ों को इतना बड़ा बना दिया था की कौरव उसे खोल नहीं पाए।
भाई और बहन के प्रतीक रक्षाबंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है। मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थीं। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी बचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।
यह भी माना जाता है कि भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ विधि से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षाबंधन को शुभ लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है।
रक्षा बंधन पर सरकारी प्रबंध
भारत सरकार द्वारा रक्षा बंधन के अवसर पर डाक सेवा पर छूट दी जाती है। इस दिन के लिए खास तौर पर 10 रुपये वाले लिफाफे की बिक्री की जाती है। इस 50 ग्राम के लिफाफे में बहनें एक साथ 4-5 राखी भाई को भेज सकती हैं। जबकी सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक राखी ही भेजी जा सकती है। यह ऑफर डॉक विभाग द्वारा बहनों को भेट है अतः यह सुविधा रक्षाबंधन तक ही अपलब्ध रहता है। और दिल्ली में बस, ट्रेन तथा मेट्रो में राखी के अवसर पर महिलाओं से टिकट नहीं लिया जाता है।
निष्कर्ष
उपयुक्त पौराणिक कथा से यह स्पष्ट है की रेशम के धागे को केवल बहन ही नहीं अपितु गुरु भी अपने यजमान की सलामति की कामना करते हुए उसे बांध सकते हैं।